रानी सती दादी
यह मन्दिर कल्युग मे सती प्रथा के प्रतीक के लिये प्रसिद है। यह मन्दिर राजस्थान के झुंझुनु जिले में है। यह लगभग जयपुर से 180 किलोमीटर की दुरी पर है। यह धाम सालासर से लगभग 83 किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि जब अभिमन्यु की मृत्यु हुई तब उनकी पत्नि उत्तरा सती होना चाहती थी परन्तु श्री कृष्ण ने उन्हे रोका क्योन्कि वह उस समय गर्भवती थीं।
उन्होने श्री कृष्ण की आग्या का पालन करते हुए उनसे यह वर्दान लिया कि अगले जन्म मे उन्हे सती होने का सौभाग्य प्राप्त हो। कुछ वर्ष उपरान्त उत्तरा का जन्म नारायणी बाई के नाम से हुआ और अभिमन्यु का जन्म तन्धनदास के नाम से हुआ । तन्धनदास के पास एक आकर्षक घोडा था जिसको हिस्सार के राजा प्राप्त करना चाहते थे । हिस्सार के राजकुमार ने तन्धनदास पर आक्रमण किया परन्तु युद्ध मे वह मारा गया । इस घटना से हिस्सार के राजा क्रोधित हुए और उन्होने तन्धनदास से बदला लेने की ठान ली । इसी दौरान तन्धनदास का विवाह नारायणी बाई के साथ हुआ । विवाह से लौटते समय अचानक हिस्सार के राजा ने उन पर आक्रमण कर दिया । युद्ध मे तन्धनदास वीरगति को प्राप्त हुए । इस घटना से नारायणी बाइ को बहुत आघात लगा और उन्होने वीरता के साथ अकेले ही राजा का वध कर दिया । इसके पश्चात उन्होने राणा जी ( उनके घोडे की देखभाल करने वाला ) से अग्नि की व्यवस्था करने को कहा ताकि वह स्वयं अग्नि में दहन होकर सती को प्राप्त हो सकें । राणा जी की व्यवस्था से प्रसन्न होकर नारायणी बाई ने उन्हे वर्दान दिया कि उनके नाम के पहले राणा जी क नाम लिया जायेगा । इसलिए नारायणी बाई को रानी सती के नाम से जाना जाता है । सती के पश्चात एक आकाशवानी हुई जि ने राणा जी को सती के भस्म को उस घोडे पर रखने को कहा और अग्या दी कि यह घोडा जिस भी जगह रुके वहीं रानी सती के मन्दिर का निर्माण किया जाए । यह घोडा झुंझुनु में जाकर रुका । वही आज रानी सती दादी का मन्दिर है । यहाँ भादवा अमावस्या का मेला लगता है जिसमे लाखों श्रद्धलु देश के कोने कोने से पूजा अर्चना करने को यहाँ आते हैं ।
उन्होने श्री कृष्ण की आग्या का पालन करते हुए उनसे यह वर्दान लिया कि अगले जन्म मे उन्हे सती होने का सौभाग्य प्राप्त हो। कुछ वर्ष उपरान्त उत्तरा का जन्म नारायणी बाई के नाम से हुआ और अभिमन्यु का जन्म तन्धनदास के नाम से हुआ । तन्धनदास के पास एक आकर्षक घोडा था जिसको हिस्सार के राजा प्राप्त करना चाहते थे । हिस्सार के राजकुमार ने तन्धनदास पर आक्रमण किया परन्तु युद्ध मे वह मारा गया । इस घटना से हिस्सार के राजा क्रोधित हुए और उन्होने तन्धनदास से बदला लेने की ठान ली । इसी दौरान तन्धनदास का विवाह नारायणी बाई के साथ हुआ । विवाह से लौटते समय अचानक हिस्सार के राजा ने उन पर आक्रमण कर दिया । युद्ध मे तन्धनदास वीरगति को प्राप्त हुए । इस घटना से नारायणी बाइ को बहुत आघात लगा और उन्होने वीरता के साथ अकेले ही राजा का वध कर दिया । इसके पश्चात उन्होने राणा जी ( उनके घोडे की देखभाल करने वाला ) से अग्नि की व्यवस्था करने को कहा ताकि वह स्वयं अग्नि में दहन होकर सती को प्राप्त हो सकें । राणा जी की व्यवस्था से प्रसन्न होकर नारायणी बाई ने उन्हे वर्दान दिया कि उनके नाम के पहले राणा जी क नाम लिया जायेगा । इसलिए नारायणी बाई को रानी सती के नाम से जाना जाता है । सती के पश्चात एक आकाशवानी हुई जि ने राणा जी को सती के भस्म को उस घोडे पर रखने को कहा और अग्या दी कि यह घोडा जिस भी जगह रुके वहीं रानी सती के मन्दिर का निर्माण किया जाए । यह घोडा झुंझुनु में जाकर रुका । वही आज रानी सती दादी का मन्दिर है । यहाँ भादवा अमावस्या का मेला लगता है जिसमे लाखों श्रद्धलु देश के कोने कोने से पूजा अर्चना करने को यहाँ आते हैं ।