रचनायें
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राम रक्षा स्त्रोत
श्री रामरक्षा स्तोत्रमश्रीगणेशायनम: ।
॥ अथ ध्यानम् ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
॥ इति ध्यानम् ॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधायुतं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥ -
रामाष्टतकम्
रामाष्टकं ।। अथ रामाष्टकम् ।।
सियावर रामचंद्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जयसुग्रीवमित्रं परमं पवित्रं सीताकलत्रं नवमेघगात्रम् ।
कारुण्य पात्रं शतपत्रनेत्रं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
संसारसारं निगमं प्रचारं धर्मावतारं हत भूमि भारम् ।
सदा निर्विकारं सुख सिन्धुसारं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
लक्ष्मी विलासं जगतां निवासं भूदेव वासं सुख सिन्धु हासम् ।
लङ्का विनाशं भवनं प्रकाशं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
मंदारमालं वचने रसालं गुणयं विशलं हत सप्ततालम् ।
क्रव्यादकालं सुरलोकपालं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
वेदांत ज्ञानं सकल सतानं हंतारमानं त्रिदशं प्रधानम्।
गजेन्द्रपालं विगता विशालं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
खेलाऽतिभीतं स्वजने पुनीतं स्यामो प्रगीतं वचने अहीतम् ।
रागेनगीतं वचने अहीतं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
लीलाशरीरं रणरङ्ग धीरं विश्वै कवीरं रघुवंशधारम् ।
गम्भीरनादं जितसर्ववादं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
श्यामाभिरामं नयनाभिरामं गुणाभिरामं वचनाभिरामं ।
विश्वप्रणामं कतभक्तिकामं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ।।
।। इति रामाष्टकं सम्पूर्णम् ।।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।। -
हनुमान चालीसा
हनुमान चालीसा ॐ श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारी
बनरऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारी
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरों पवन कुमार
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार
सियावर रामचंद्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहूँ लोक उजागर ।।
रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनी पुत्र पवनसुत नामा ।।
महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन विराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजे । काँधे मूँज जनेऊ साजे ।।
संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ।।
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा । विकट रूप धरि लंक जरावा ।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ।।
लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतही सम भाई ।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावें । अस कही श्रीपति कठ लगावें ।।
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ।।
जम कुबेर दिकपाल जहाँ ते । कवि कोविद कही सके कहाँ ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।
तुम्हरो मन्त्र विभीसन माना । लंकेस्वर भये सब जग जाना ।।
जुग सहस जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहि । जलधि लांघी गये अचरज नाही ।।
दर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहें तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपे । तीनो लोक हाँक ते काँपे ।।
भूत पिशाच निकट नहि आवे । महावीर जब नाम नाम सुनावे ।।
नासे रोग हरि सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।
संकट ते हनुमान छुडावे । मन क्रम वचन ध्यान जो लावे ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावे । सोई अमित जीवन फल पावे ।।
चारों जुग प्रताप तुम्हारा । हें परसिद्ध जगत उजियारा ।।
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ।।
अस्ट सिद्धि नों निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावे । जनम जनम के दुःख बिसरावे ।।
अन्त काल रघुवर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ।।
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेई सर्ब सुख करई ।।
संकट कटे मिटे सब पीरा । जो सुमिरे हनुमत बलबीरा ।।
जे जे जे हनुमान गोसाई । कृपा कहु गुरुदेव की नाई ।।
जो सत बार पाठ कर कोई । छुटेहि बंदि महा सुख होई ।।
जो यह पड़े हनुमान चालीसा । होई सिद्धि साखी गोरिसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजे नाथ ह्रदय महँ डेरा ।।
पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
बजरंग बाण
बजरंग - बाणनिश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ॥
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान॥
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
हनुमानाष्टक
संकटमोचन हनुमानाष्टक।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
बाल समय रवि भक्ष लियो तब, तीनहुं लोक भयो अँधियारो
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो
देवन आनि करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निहारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥1॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिये कौन विचार विचारो
कै द्घिज रुप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो
जीवत न बचिहों हम सों जु, बिना सुधि लाए इहां पगु धारो
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया सुधि प्राण उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥
रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो
चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥
बाण लग्यो उर लक्ष्मण के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो
लै गृह वैघ सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु-बीर उपारो
आनि संजीवनी हाथ दई तब, लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥
रावण युद्घ अजान कियो तब, नाग की फांस सबै सिरडारो
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बन्धन काटि सुत्रास निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥
बन्धु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समैत संहारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥
काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि विचारो
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो
बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥
पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर -
हनुमान साठिका
हनुमान साठिका ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
जय जय जय हनुमान अड़न्गी । महावीर विक्रम बजरंगी ।1।
जय कपीश जय पवन कुमारा । जय जय वंदन शील अगारा ।2।
जय आदित्य अमर अविकारी । अरि मरदन जय जय गिरधारी ।3।
अंजनी उदर जन्म तुम लीन्हो । जय जय कार देवतन कीन्हो ।4।
बाजै दुंदिभी गगन गंभीरा । सुर मन हरष असुर मन पीरा ।5।
कपि के डर गढ़ लंक समानी । छूटि बंदि देव तन जानी ।6।
ऋषी समूह निकट चलि आये । पवन तनय के पद सिर नाए ।7।
बार बार स्तुति कर नाना । निर्मल नाम धरा हनुमाना ।8।
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना । दीन बताये लाल फल खाना ।9।
सुनत वचन कपि मन हर्षाना । रवि रथ उदय लाल फल जाना ।10।
रथ समेत कपि कीन्ह अहारा । सूर्य बिना भयो अति अँधियारा ।11।
विनय तुम्हार करैं अकुलाना । तब कपीश की स्तुति ठाना ।12।
सकल लोक वृतांत सुनावा । चतुरानन तब रवि उगिलावा ।13।
कहा बहोरि सुनहु बलशीला । रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ।14।
तब तुम उनकर करब सहाई । अबहि बसहु कानन में जाई ।15 ।
असि कहि विधि निज लोक सिधारे । मिले सखा संग पवन कुमारे ।16।
खेलें खेल महा तरु तोड़ें । ढेर करें बहु पर्वत फौड़ें ।17।
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई । गिरि समेत पातालाहिं जाई ।18।
कपि सुग्रीव बाली की त्रासा । निरखत रहे राम मगु आशा ।19।
मिले राम तँह पवन कुमारा । अति आनंद सप्रेम दुलारा ।20।
मणि मुंदरी रघुपति सो पाई । सिया खोज ले चलि सिर नाई ।21।
सत जोजन जल निधि विस्तारा । अगर अपार देवतन हारा ।22।
जिमि सर गोखुर सरिस कपीशा । लाँघि गए कपि कहि जगदीशा ।23।
सीता चरण शीश तुम नाए । अजर अमर के आशिष पाए ।24।
रहे दनुज उपवन रखवारी । एक से एक महाभट भारी ।25।
तिन्हे मारि पुनि कहेउ कपीसा । दहेऊ लंक कोप्यो भुज बीसा ।26।
सिया बोध दै पुनि फिर आये । रामचंद्र के पाद सिर नाए ।27।
मेरु उपार आप छिन माहीं । बांध्यो सेतु निमिष एक मांही ।28।
लक्ष्मण शक्ति लागी जबहीं । राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ।29।
भवन समेत सुषेण को लाये । तुरत संजीवन को पुनि धाये ।30।
मग मँह कालनेमि को मारा । अमिट सुभट निशचर संहारा ।31।
आनि संजीवन गिरि समेता । धरि दीन्हो जंह कृपानिकेता ।32।
फनपति केर शोक हरि लीन्हा । हरषि सुरन सुर जय जय कीन्हा ।33।
अहिरावन हरि अनुज समेता । लै गयो तहाँ पाताल निकेता ।34।
जहां रहे देवी अस्थाना । दीन चहै बलि काढि कृपाना ।35।
पवन तनय प्रभु कीन गुहारी । कटक समेत निशाचर मारी ।36।
रीछ कीशपति सबै बहोरी । राम लखन कीने एक ठौरी ।37।
सब देवतन की बंदि छूडाये। सो कीरति नारद मुनि गाये ।38।
अक्षय कुमार को मार संहारा । लूम लपेटी लंक को जारा ।39।
कुम्भकरण रावण को भाई । ताहि निपाति कीन्ह कपिराई ।40।
मेघनाद पर शक्ति मारा । पवन तनय सब सो बरियारा ।41।
तंहा रहे नारान्तक जाना । पल में हते ताहि हनुमाना ।42।
जंह लगि मान दनुज कर पावा । पवन तनय सब मारि नसावा ।43।
जय मारुत सूत जय अनुकूला । नाम कृशानु शोक सम तूला ।44।
जंह जीवन पर संकट होई । रवि तम सम सो संकट खोई ।45।
बंदी परै सुमरि हनुमाना । संकट कटे धरे जो ध्याना ।46।
यम को बांधि वाम पाद लीन्हा । मारुतसुत व्याकुल सब कीन्हा ।47।
सो भुज बल को दीन्ह कृपाला । तुम्हरे होत मोर यह हाला ।48।
आरत हरण नाम हनुमाना । सादर सुरपति कीन्ह बखाना ।49।
संकट रहे न एक रती को । ध्यान धरे हनुमान जती को ।50।
धावहु देख दीनता मोरी । कहौ पवनसुत युग कर जोरी ।51।
कपिपति बेगि अनुग्रह करहूँ । आतुर आय दुसह दुःख हरहूँ ।52।
राम सपथ मैं तुमहि सुनावा । जवन गुहार लाग सिय जावा ।53।
शक्ति तुम्हार सकल जग जाना । भव बंधन भंजन हनुमाना ।54।
यह बंधन कर केतिक बाता । नाम तुम्हार जगत सुख दाता ।55।
करौ कृपा जय जय जग स्वामी । बारि अनेक नमामि नमामी ।56।
भौमवार करि होम विधाना । धूप दीप नैवेद्य सुजाना ।57।
मंगल दायक को लौ लावे । सुर नर मुनि वांछित फल पावै ।58।
जयति जयति जय जय जग स्वामी । समरथ पुरुष सुअंतर जामी ।59।
अंजनि तनय नाम हनुमाना । सो तुलसी के प्राण समाना ।60।
जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
राम लखन सीता सहित, सदा करौ कल्याण ।।
वन्दौ हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।
ध्यान धरे नर निश्चय, पावै पाद कल्याण ।।
पढ़े जो नित यह साठिका , तुलसी कहें विचार ।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी है त्रिपुरार ।।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
हनुमत्स्त्रोतं
विभषणकृतं हनुमत्स्त्रोतं।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे ।
नम: श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नम: ॥
नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे ।
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे ॥
सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च ।
रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नम: ॥
मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नम: ।
अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे ॥
वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने ।
वनपालशिरश्छेदलङ्काप्रासादभञ्जिने ॥
ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाड्गूलधारिणे ।
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नम: ॥
अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे ।
लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षतविनाशिने ॥
रक्षोध्नाय रिपुध्नाय भूतध्नाय च ते नम: ।
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नम: ॥
परसैन्यबलध्नाय शस्त्रास्त्रध्नाय ते नम: ।
विषध्नाय द्विषध्नाय ज्वरध्नाय च ते नम: ॥
महाभयरिपुध्नाय भक्तत्राणैककारिणे ।
परप्रेरितमन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे ॥
पय:पाषाणतरणकारणाय नमो नम: ।
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे ॥
नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च ।
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे ॥
प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने ।
करालशैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नम: ॥
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च ।
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नम: ॥
कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय च ।
दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने ॥
कृत्याक्षतव्यथाध्नाय सर्वक्लेशहराय च ।
स्वाम्याज्ञापार्थसंग्रामसंख्ये संजयधारिणे ॥
भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने ।
किल्किलाबुबुकोच्चारघोरशब्दकराय च ॥
सर्पाग्निव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे ।
सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषत: ॥
महार्णवशिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नम: ।
वादे विवादे संग्राम भये घोरे महावने ॥
सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्य: स्तोत्रपाठद् भयं न हि ।
दिव्ये भूतभये व्याधौ विषे स्थावरजङ्गमे ॥
राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च ।
जले सर्वे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे ॥
पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्य: सर्वतो नर: ।
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठत: ॥
सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवम् ।
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥
विभषणकृतं स्तोत्रं ताक्ष्र्येण समुदीरितम् ।
ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिता: ॥
इति श्रीसुदर्शनसंहितायां विभीषणगरुडसंवादे विभषणकृतं हनुमत्स्तोत्रं सम्पूर्णम्। ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम्
ऋणमोचक मंगल स्तोत्र ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥१
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥२
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥३
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥४
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥५
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥६
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥७
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥८
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥९
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥१०
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥११
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥१२ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
श्री आञ्जनेय 108 नामावलि
श्री आञ्जनेय अष्टोत्तरशत नामावलि ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
ॐ आञ्जनेयाय नमः ।
ॐ महावीराय नमः ।
ॐ हनूमते नमः ।
ॐ मारुतात्मजाय नमः ।
ॐ तत्वज्ञानप्रदाय नमः ।
ॐ सीतादेविमुद्राप्रदायकाय नमः ।
ॐ अशोकवनकाच्छेत्रे नमः
ॐ सर्वमायाविभंजनाय नमः।
ॐ सर्वबन्धविमोक्त्रे नमः ।
ॐ रक्षोविध्वंसकारकाय नमः ।
ॐ परविद्या परिहाराय नमः ।
ॐ पर शौर्य विनाशकाय नमः ।
ॐ परमन्त्र निराकर्त्रे नमः ।
ॐ परयन्त्र प्रभेदकाय नमः ।
ॐ सर्वग्रह विनाशिने नमः ।
ॐ भीमसेन सहायकृथे नमः ।
ॐ सर्वदुखः हराय नमः।
ॐ सर्वलोकचारिणे नमः ।
ॐ मनोजवाय नमः ।
ॐ पारिजात द्रुमूलस्थाय नमः ।
ॐ सर्व मन्त्र स्वरूपाय नमः ।
ॐ सर्व तन्त्र स्वरूपिणे नमः ।
ॐ सर्वयन्त्रात्मकाय नमः ।
ॐ कपीश्वराय नमः।
ॐ महाकायाय नमः ।
ॐ सर्वरोगहराय नमः ।
ॐ प्रभवे नमः ।
ॐ बल सिद्धिकराय नमः।
ॐ सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायकाय नमः ।
ॐ कपिसेनानायकाय नमः ।
ॐ भविष्यथ्चतुराननाय नमः ।
ॐ कुमार ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ रत्नकुन्डलाय नमः ।
ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः ।
ॐ वज्र कायाय नमः ।
ॐ महाद्युथये नमः ।
ॐ चिरंजीविने नमः ।
ॐ राम भक्ताय नमः ।
ॐ दैत्यकार्य विघातकाय नमः ।
ॐ अक्षहन्त्रे नमः ।
ॐ काञ्चनाभाय नमः ।
ॐ पञ्चवक्त्राय नमः ।
ॐ महा तपसे नमः ।
ॐ लन्किनी भञ्जनाय नमः ।
ॐ श्रीमते नमः
ॐ सिंहिका प्राण भन्जनाय नमः ।
ॐ गन्धमादन शैलस्थाय नमः ।
ॐ लंकापुर विदायकाय नमः ।
ॐ सुग्रीव सचिवाय नमः ।
ॐ धीराय नमः ।
ॐ शूराय नमः ।
ॐ दैत्यकुलान्तकाय नमः ।
ॐ सुवार्चलार्चिताय नमः ।
ॐ दीप्तिमते नमः ।
ॐ चन्चलद्वालसन्नद्धाय नमः ।
ॐ लम्बमानशिखोज्वलाय नमः ।
ॐ गन्धर्व विद्याय नमः ।
ॐ तत्वञाय नमः ।
ॐ महाबल पराक्रमाय नमः ।
ॐ काराग्रह विमोक्त्रे नमः ।
ॐ शृन्खला बन्धमोचकाय नमः ।
ॐ सागरोत्तारकाय नमः ।
ॐ प्राज्ञाय नमः ।
ॐ रामदूताय नमः ।
ॐ प्रतापवते नमः ।
ॐ वानराय नमः ।
ॐ केसरीसुताय नमः।
ॐ सीताशोक निवारकाय नमः ।
ॐ अन्जनागर्भ संभूताय नमः ।
ॐ बालार्कसद्रशाननाय नमः।
ॐ विभीषण प्रियकराय नमः ।
ॐ दशग्रीव कुलान्तकाय नमः ।
ॐ तेजसे नमः ।
ॐ रामचूडामणिप्रदायकाय नमः ।
ॐ कामरूपिणे नमः।
ॐ पिन्गाळाक्षाय नमः ।
ॐ वार्धि मैनाक पूजिताय नमः ।
ॐ कबळीकृत मार्तान्ड मन्डलाय नमः ।
ॐ विजितेन्द्रियाय नमः ।
ॐ रामसुग्रीव सन्धात्रे नमः ।
ॐ महिरावण मर्धनाय नमः ।
ॐ स्फटिकाभाय नमः ।
ॐ वागधीशाय नमः।
ॐ नवव्याकृतपण्डिताय नमः ।
ॐ चतुर्बाहवे नमः ।
ॐ दीनबन्धुराय नमः ।
ॐ मायात्मने नमः ।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
ॐ संजीवननगायार्था नमः ।
ॐ सुचये नमः ।
ॐ वाग्मिने नमः ।
ॐ दृढव्रताय नमः ।
ॐ कालनेमि प्रमथनाय नमः ।
ॐ हरिमर्कट मर्कटाय नमः।
ॐ दान्ताय नमः।
ॐ शान्ताय नमः।
ॐ प्रसन्नात्मने नमः ।
ॐ शतकन्टमुदापहर्त्रे नमः ।
ॐ योगिने नमः ।
ॐ रामकथा लोलाय नमः ।
ॐ सीतान्वेशण पठिताय नमः ।
ॐ वज्रद्रनुष्टाय नमः ।
ॐ वज्रनखाय नमः ।
ॐ रुद्र वीर्य समुद्भवाय नमः ।
ॐ इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारकाय नमः
ॐ पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने नमः ।
ॐ शरपंजरभेधकाय नमः ।
ॐ दशबाहवे नमः ।
ॐ लोकपूज्याय नमः ।
ॐ जाम्बवत्प्रीतिवर्धनाय नमः ।
ॐ सीतासमेत श्रीरामपाद सेवदुरन्धराय नमः
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
श्री हनुमान जी की आरती
श्री हनुमान जी की आरती।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर काँपे । रोग दोष जाके निकट न झांके ।।
अनजानी पुत्र महाबलदायी । संतान के प्रभु सदा सहाई ।
दे बीरा रघुनाथ पठाये । लंका जारी सिया सुध लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारी असुर संहारे । सियारामजी के काज सँवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे । आणि संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठी पताल तोरि जम कारे । अहिरावण की भुजा उखाड़े ।।
बाएं भुजा असुरदल मारे । दाहिने भुजा संतजन तारे ।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरती करत अंजना माई ।।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई । तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावै । बसी बैकुंठ परमपद पावै ।।
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
श्री हनुमान के चरणों में लगा थोड़ा-सा सिंदूर मस्तक यानी दोनों भौहों के बीच या सिर के चोटी यानी शिखा वाले स्थान पर लगाकर कार्य की सफलता की कामना से नीचे लिखी मन्त्र के पश्चात ही आसन त्यागे करें।
नमस्ते नमस्ते महावायु सुनो, नमस्ते नमस्ते भविष्यत् विधान: ।
नमस्ते नमस्ते सदभीष्टपूर्ते, नमस्ते नमस्ते निशं रामभक्त ।।
आरती के बाद अंत में क्षमा प्रार्थना के दौरान बोलें :
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं कपीश्वर ।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे ।।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
हनुमान स्तवन
हनुमान स्तवन प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् ।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् ।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।
गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् ।
रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ।।
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम् ।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम् ।।
उल्लङ्घ्य सिन्धो: सलिलं सलीलं य: शोकवह्निं जनकात्मजाया: ।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम् ।
पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम् ।।
यत्र-यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र-तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् |
बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ।।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
हनुमान जंजीरा
हनुमान जंजीरा ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान ।
हाथ में लड्डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान ।
अंजनी का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ ।
नौ खंड का भूत, जाग जाग हड़मान ।
हुँकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा ।
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला ।
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे ।
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट पिंड ।
की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुँवर हड़मान करें ।
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
हनुमन्त त्रिकाल वंदनं
हनुमन्त त्रिकाल वंदनं ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
प्रातः स्मरामि हनुमन् अनन्तवीर्यं श्री रामचन्द्र चरणाम्बुज चंचरीकम् ।
लंकापुरीदहन नन्दितदेववृन्दं सर्वार्थसिद्धिसदनं प्रथितप्रभावम् ॥
माध्यम् नमामि वृजिनार्णव तारणैकाधारं शरण्य मुदितानुपम प्रभावम् ।
सीताधि सिंधु परिशोषण कर्म दक्षं वंदारु कल्पतरुं अव्ययं आञ्ज्नेयम् ॥
सायं भजामि शरणोप स्मृताखिलार्ति पुञ्ज प्रणाशन विधौ प्रथित प्रतापम् ।
अक्षांतकं सकल राक्षस वंश धूम केतुं प्रमोदित विदेह सुतं दयालुम् ॥
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
हनुमत्पञ्रत्न स्तोत्रम्
हनुमत्पञ्रत्न स्तोत्रम् ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
वीताखिलविषयेच्छं जातानन्दाश्रुपुलकमत्यच्छम् ।
सीतापतिदूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम् ॥
तरुणारुणमुखकमलं करुणारसपूरपूरितापाङ्गम् ।
संजीवनमाशासे मञ्जुलमहिमानमञ्जनाभाग्यम् ॥
शम्बरवैरिशरातिगमम्बुजदलविपुललोचनोदारम् ।
कम्बुगलमनिलदिष्टं विम्बज्वलितोष्ठमेकमवलम्बे ॥
दूरीकृतसीतार्ति: प्रकटीकृतरामवैभवस्फूर्ति: ।
दारितदशमुखकीर्ति: पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्ति: ॥
वानरनिकराध्यक्षं दानवकुलकुमुदरविकरसदृक्षम् ।
दीनजनावनदीक्षं पावनतप:पाकपुञ्जमद्राक्षम् ॥
एतत् पवनसुतस्य स्तोत्रं य: पठति पञ्चरत्नाख्यम् ।
चिरमिह निखिलान् भोगान् भुक्त्वा श्रीरामभक्तिभाग् भवति ॥
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।। -
मन्द्दात्मकं मारुतिस्तोत्रम्
मन्द्दात्मकं मारुतिस्तोत्रम् ।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
नमो वायुपुत्राय भीमरूपाय धीमते ।
नमस्ते रामदूताय कामरूपाय श्रीमते ॥
मोह शोकविनाशाय सीताशोकविनाशिने ।
भगनशोकवनायास्तु दग्धलङ्काय वाग्मिने ॥
गतिनिर्जितवाताय लक्ष्मणप्राणदाय च ।
वनौकसां वरिष्ठाय वशिने वनवासिने ॥
तत्त्वज्ञानसुधासिन्धुनिमगनय महीयते ।
आञ्जनेयाय शूराय सुग्रीवसचिवाय ते ॥
जन्ममृत्युभयघनय सर्वकष्टहराय च ।
नेदिष्ठाय प्रेतभूतपिशाचभयहारिणे ॥
यातनानाशनायास्तु नमो मर्कटरूपिणे ।
यक्षराक्षसशार्दूलसर्पवृश्चिकभीहृते ॥
महाबलाय वीराय चिरंजीविन उद्धते ।
हारिणे वज्रदेहाय चोल्लङ्घितमहाब्धये ॥
बलिनामग्रगण्याय नमो न: पाहि मारुते ।
लाभदोऽसि त्वमेवाशु हनुमन् राक्षसान्तक ॥
यशो जयं च मे देहि शत्रून् नाशय नाशय ।
स्वाश्रितानामभयदं य एवं स्तौति मारुतिम् ॥
हानि: कुतो भवेत्तस्य सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।।