मोहनदासजी की समाधि
मंदिर के सामने के दरवाजे से थोड़ी दूर पर ही मोहनदासजी की समाधि है, जहां कानीबाई की मृत्यु के बाद उन्होंने जीवित-समाधि ले ली थी। पास ही कानीबाई की भी समाधि है । मंदिर के बाहर धूणां है। यह धूणा श्रीबालाजी के मन्दिर के समीप भक्तप्रवर श्री मोहनदासजी महाराज द्वारा अपने हाथों से प्रज्वलित किया गया था। यह धूणी तब से आज तक प्रज्वलित है। श्रद्धालुजन इस धूणे से भभूति ( भस्म ) ले जाते हैं और अपने संकट निवारणार्थ उपयोग करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह विभूति भक्तों के सारे कष्टों को दूर कर देती है । सच्चे मन से आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं को अचूक लाभ होते हुये देखा गया है । मंदिर में मोहनदासजी के पहनने के कड़े भी रखे हुए हैं। ऐसा बताते हैं कि यहां मोहनदासजी के रखे हुए दो कोठले थे, जिनमें कभी समाप्त न होनेवाला अनाज भरा रहता था, पर मोहनदासजी की आज्ञा थी कि इनको खोलकर कोई न देखें। बाद में किसी ने इस आज्ञा का उल्लंघन कर दिया, जिससे कोठलों की वह चमत्कारिक स्थिति समाप्त हो गयी।